खुश रहने लगी हूँ
कहानी-तेरे बिन मैंने अपने पति विवेक को शाम में सैर करने भेजा तो थोड़ी ही देर में वो वापस आ गए।मैंने पूछा-"इतनी जल्दी आ गए"। मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा-"तुम्हारे बिना सैर करने में अकेले माज़ा नही आता,तुम साथ होती हो तो रास्ते का पता ही नही चलता और इस तरह सैर भी ज्यादा कर लेता हूं"। दो तीन दिन से पैर में दर्द की वजह से मैं आज विवेक के साथ जा नही पायी। चाय बनाने के लिए किचन में आकर सोचने लगी सच ही तो कह रहे थे वो जब हम दोनों साथ होते हैं तो न समय का भान रहता है न राह की दूरियों का।यही तो वो प्यार है जो उम्र बढ़ने के साथ और भी बढ़ता जाता है और धीरे धीरे मन के किसी कोने में अकेलेपन का अहसास डर को जन्म देने लगता है। उन्होंने तो बस एक लाइन में ही मुझे प्यार में आकंठ डुबो उसकी गहराई समझा दी थी।